गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल अधिकांश देश नक-स्वतंत्र थे जो अभी-अभी औपनिवेशिक चुंगल से मुक्त हुए थे, जिनकी अर्थव्यवस्था जर्जर थी तथा गरीबी, बेरोजगारी जैसी कठिन समस्याएँ उनके समक्ष खड़ी थीं। गुटनिरपेक्ष आंदोलन का लक्ष्य मात्र शीतयुद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियों के बीच मध्यस्थता करना नहीं था बल्कि अपने देशों का आर्थिक विकास करना तथा जनता को गरीबी से उबारकर देश को सम्मानजनक स्थान दिलवाना भी इस आंदोलन का लक्ष्य था। इन देशों की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए इनका आर्थिक विकास आवश्यक था। इन्हीं परिस्थितियों में NIEO का जन्म हुआ।
सन् 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ के व्यापार और विकास से संबंधित सम्मेलन UNCTAD में ‘विकास के लिए एक नई व्यापार नीति की ओर’ शीर्षक से एक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया। इस प्रतिवेदन में वैश्विक व्यापार-प्रणाली में सुधार का प्रस्ताव किया गया। इसका लक्ष्य था:
- अल्पविकसित देशों को अपने उन संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त होगा जिनका दोहन पश्चिम के विकसित देश करते हैं।
- अल्पविकसित देशों की पहुँच पश्चिमी देशों के बाजारों तक होगी जिससे वे अपना उत्पाद वहाँ बेच सकते हैं। इस तरह व्यापार उनके लिए मुनाफे वाला होगा।
- अल्पविकसित देशों को दी जा रही तकनीक की लागत को पश्चिमी देश कम करेंगे।
- अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों में अल्पविकसित देशों को महत्वपूर्ण भूमिका दी जाएगी।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन में इसके पश्चात् आर्थिक मुद्दों पर अधिक जोर देना शुरू कर दिया गया। सन् 1961 में हुए पहले सम्मेलन में आर्थिक पहलू इतना महत्वपूर्ण नहीं था। परंतु सन् 1973 में अल्जियर्स में हुए चौथे सम्मेलन में 76 उपस्थित सदस्यों में NIEO के गठन की मांग के कारण NAM एक आर्थिक दबाव समूह बन गया। आगे होने वाले सम्मेलनों हवाना (1979), नई दिल्ली (1986), बेलग्रेड (1989), कार्टेगना (1995), कुआलालम्पुर (2003) तथा पुनः हवाना (2006) में समानता व स्वच्छता (fairness) पर आधारित आर्थिक सहयोग के लिए उत्तर-दक्षिण संवाद का आहान किया गया, जबकि NIEO का विचार 80 के दशक में अल्पविकसित देशों के विरुद्ध विकसित देशों के संगठित होने के कारण कमजोर पड़ने लगा। विकासशील देशों के विरोध के कारण गुटनिरपेक्ष देशों में ऐसी एकता के लिए करना पड़ा।